
- शाहपुर लपटा में आयोजित हुआ फागुवा गीत। फागुवा प्रेमियों ने फागुवा गीतों का उठाया आनन्द।
मोतिगरपुर, सुल्तानपुर.फिल्मी गीतों के साथ ही हाईटेक होते माहौल के बीच फगुआ अपनी पहचान बनाए हुए है। शहरी क्षेत्रों में फगुआ बीते कुछ वर्षों से कम हुआ है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह परंपरा अभी भी चल रही है। फगुआ के प्रति युवाओं का रुझान कुछ कम जरूर हुआ है, लेकिन जब बुजुर्गों द्वारा होली पर्व से पहले फगुआ का आयोजन किया जाता है तो वह ग्रामीणों के आकर्षक का केंद्र बन जाता है। होली पर्व से पहले जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में भारतीय संस्कृति को मजबूत करता फगुआ शुरू हो गया है।
।इक्कीसवीं सदी में फाग गीत जहां बिलुप्त होता जा रहा है। वहीं मंगलवार को आयोजित बारामासी फागुवा गायन कार्यक्रम में फागुवा टोली ने ढोलक,मजीरा की थाप पर बालम बिन राम, बालम बिन राम, बालम बिन सुनी सेजारिया, आदि मनमोहक फागुवा गीतों का फागुवा प्रेमियों ने देर शाम तक आनन्द उठाया।
- फगुवारे बोले:-हरि बाजी मुरलिया तुम्हारी, जुलुम होईगा भारी
मंगलवार को गौरा गांव के बड़े लाल तिवारी के संयोजन में शाहपुर लपटा में फगुआ ,डेढ ताल,चौताल, बेलवईया आदि बारामासा गीतों को प्रस्तुत किया गया। मलवा,जयसिंहपुर, कैथवारा, गौरा, शाहपुर लपटा फागुवारो की टोली ने पपिहा बसंत ऋतु आया, भारत में नया रंग छाया, सन्देशा लाया, उड़ जा पंछी जहां हरि प्यारे, बैठ के कौन अमवा के डारे,पिया पिया गोहराना, जामुना तट कदम की डारी, हरि बाजी मुरलिया तुम्हारी, जुलुम होईगा भारी आदि फागुवा गीतों का लोगों ने आनन्द लिया। बडेलाल तिवारी ने बताया बच्पन में फागुन मास से घर घर, गांव गांव में फगुवारो की टोली फागुवा गीत प्रस्तुत करती थी। बडा आनन्द मिलता था। अब प्रथा बिलुप्त होती जा रही है। युवा पीढ़ी को पुरानी परम्परा कायम करना होगा। जिससे आपस में परस्पर प्रेम बढ़े। कार्यक्रम में डॉ अम्बरीष तिवारी, अपूर्व मंगलम, शंकर दयाल सिंह, अवधेश सिंह,शिव शंकर पांडे, राम प्रताप शुक्ल, सुनील दूवे, योगेश सिंह, संजय सिंह, खुशी खान आदि रहे।