Tuesday, June 3, 2025
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सुल्तानपुर की जनता ने हर बार चुना BJP का बाहरी उम्मीदवार:-पार्टी ने जब जब उतारे स्थानीय प्रत्याशी तब तब गंवाई सांसदी..

दसवीं बार सांसदी के लिए ताल ठोक रही मेनका।

केंद्र में गैर भाजपा सरकारों के दौरान लोक सभा का कर चुकी है प्रतिनिधित्व।

डबल इंजन की सरकार के लुभावने वादे इस बार भी होंगे जीत में कारगर।

टिकट की दावेदारी में गैर जमीनी नेता चलते है दांव।

सुल्तानपुर।इस जिले की सांसदी चुनाव बहुत ही रोचक है। यहां पर बरसाती मेढ़क की तरह गैर जमीनी नेता सत्ताधारी पार्टी के साथ ही अन्य दलों में प्रमुखता से दावेदारी करते है।भाजपा हाईकमान जब जब लोकल प्रत्याशी को महत्व दे चुनावी मैदान में उतारा तब तब सांसदी गंवा दिया।ऐसे में इस पार्टी को आयातित प्रत्याशी बहुत सूट किया।जीत दर्ज कराया।

  • भाजपा के बाहरी प्रत्याशी का खारिज हो चुका है पर्चा,कभी नही जीते लोकल प्रत्याशी

वर्ष1999 में एक बार बीजेपी का पर्चा खारिज हो चुका है।यहां से टिकट गोंडा जनपद के सत्यदेव सिंह को मिला था।खारिज हो जाने से पहली बार बसपा से राजनीति क्षेत्र में कूदे जयभद्र सिंह सांसद बन गए।राजनीति का लोस या विस में प्रतिनिधित्व करने का ख्वाब देखने वाले शेरे यूपी पवन पांडेय दो दो बार सांसदी में किस्मत आजमाए लेकिन हार हाथ लगी। शिवसेना से विधायक रह चुके है।2004 में मो. ताहिर खां बसपा सांसद बने।इनके मुकाबले स्थानीय डा. बीना पांडेय बीजेपी से मैदान में आई हार गई।2009 में कांग्रेस से डा.संजय सिंह तब जीत गए जब बीजेपी से लोकल प्रत्याशी सूर्यभान सिंह मैदान में थे।इसके बावजूद इस बार भी टिकट की दावेदारी में लोकल नेताओ की लंबी सूची थी।सच तो ये भी हैं इन स्थानीय नेताओं का कोई जनाधार भी नही था। वैसे भी भाजपा के अलावा अन्य पार्टियों के प्रत्याशी लोकल ही जीते है।

अब तक ये बने भाजपा से सांसद

इस जिले में 1967 में निर्दल से गनपत सहाय सांसद बने थे।जबकि भाजपा के खाते में पहली बार यह सीट 1991 में बाहरी विश्वनाथ दास शास्त्री की जीत से शुरू हुई।दो दो बार बाहरी प्रत्याशी डीबी राय ने बीजेपी से जीत हासिल किया।फिर2014 में मेनका संजय गांधी के पुत्र वरुण गांधी ने परचम लहराया।वही 2019 में मेनका गांधी खुद सांसद बन गई।

गैर भाजपा सरकार में भी सांसद रही मेनका

संजय गांधी की मौत विमान हादसे में होने के बाद इन्होंने पारिवारिक रिश्तों को तिलांजलि देते हुए मेनका गांधी अमेठी से 1984 में अपने जेठ राजीव गांधी के ही खिलाफ चुनाव मैदान में उतरी,लेकिन हार गई।इसके पहले मेनका गांधी सूर्या पत्रिका का संपादन किया।फिर इन्होंने राष्ट्रीय संजय मंच का गठन किया था।इनके मंच से आंध्र प्रदेश में चार सीटें झोली में आई थी। ये पूर्व पीएम वीपी सिंह की पार्टी जनता दल में महासचिव बन गई।फिलहाल चार दशक पूर्व गांधी परिवार का राजनीति में पूरा दखल था।ऐसे में मेनका गांधी को बीजेपी ने अपने पाले में करते हुए वर्ष1989 में पीलीभीत से मैदान में उतारा।उन्होंने30 वर्ष की उम्र में सांसद बन गई।तब से लगातार नौ बार से सांसद है।कई बार मंत्री रह चुकी है।यदि ये कहा जाय जब भाजपा से गिने चुने लोग सांसद/विधायक होते थे तो इनका नाम रहता था।यही नहीं जब भाजपा केंद्र में नही थी और वीपी सिंह,पीवी नरसिंहराव, मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे तब भी ये सांसद चुनी जाती रही।इसके साथ मेनका गांधी किताबे भी लिखती रही।ये पर्यावरण संरक्षण के साथ ही पशु पक्षी प्रेमी भी है।इनकी राजनीतिक पहचान देश विदेश में तो है ही।वन्य जीव की प्रताड़ना पर रोक लगाने में आगे रहती है।

पिछले चुनाव में नाम मात्र वोट से लगातार जीत का लहराया परचम

2019 के लोस चुनाव में निवर्तमान सांसद मेनका गांधी को जीत के लिए नाको चने चबाने पड़े। जबकि ये स्थिति इसके पहले नहीं रही।जीत में लाखो वोट का अंतर रहा।यहां तो केवल 13हजार वोट के अंतर से जीत मिली।जबकि उस समय सपा,बसपा से चंद्र भद्र सिंह व कांग्रेस से डा.संजय सिंह मैदान में थे।2024 का चुनाव और ही दिलचस्प होगा।अभी बीजेपी कैंडिडेट के मुकाबले इंडिया गठबंधन से सपा प्रत्याशी भीम निषाद है।इनकी सराहना प्रतिद्वंदी प्रत्याशी मेनका कर चुकी हैं।बसपा ने प्रत्याशी अभी नहीं उतारा है।इतना जरूर है कि यदि भाजपाईयो ने मन से प्रचार प्रसार व वोट मांगे तो इस बार जीत का अंतर लाखो में होगा।खैर अपनी मां के प्रचार में वरुण गांधी भी निजी समस्या के चलते नही आ रहे हैं।यहां की जनता भी इन्हे मां कह कर पुकारती है।ये भले ही छोटे छोटे मामलो में हस्तक्षेप नहीं करती है।लेकिन कुछ वर्ग विशेष लोगो व ठेकेदारों से घिरी जरूर दिखाई देती हैं।फिलहाल मेनका गांधी का ऐलान है जो भी विकास कार्य अधूरे है उसे आगे प्रतिनिधित्व मिलने पर पूरा कराया जायेगा।यही नहीं भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी चुनावी प्रचार में एक अप्रैल से दस अप्रैल तक जिले लगातार भ्रमण पर है।