Friday, April 11, 2025
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सुल्तानपुर में भूमाफिया को संरक्षण प्रदान करने में नगर के लेखपाल व कानून गो निभाते है अहम रोल…

योगी जी!सुल्तानपुर में डॉक्टर की हत्या के बाद बैनामे की जमीन पर मिला कब्जा

डॉक्टर के शहर में आशियाना का सपना नही हो सका साकार।

प्रदेश की सदर तहसील है कमाऊ क्षेत्र, तभी तो ज्यादातर राजस्व कर्मी(लेखपाल/ कानूनगो) करना चाहते है नौकरी।

डीएम मैम,अगर राजस्व महकमें ने दिखाई होती तत्परता तो न होती डॉक्टर की हत्या

सुल्तानपुर।योगी जी! आपकी चाहे तबादला नीति हो या भ्रष्टाचार मुक्त रखने का दावा,सब खोखला साबित हो रहा है।यह बात हम नही कह रहे,इसे आम जनता कह रही है।
जिले में दो दिन पहले डॉक्टर की हत्या इसलिए हो जाती है कि उसने दो बिस्सा जमीन पचास लाख रु में खरीदा।दाखिल खारिज हो गया।लेकिन कब्जा मिलना दूर रहा।वह चाह कर भी एक दो बार लेखपाल कानूनगो व राजस्व अफसरों से कब्जा न मिलने की शिकायत किया।लेकिन परिणाम डाक के तीन पात रहा। खुलकर इसलिए भी विरोध की हिम्मत इसलिए नही हुई क्योंकि एक नही कई बार आरोपी गण बुलाकर धमकी देते।यही नहीं एक दो बार आरोपियों के घर/ कार्यालय पर गया तो लेखपाल,कानूनगो,लोकल पुलिस भी दरबार करती दिखी।खैर प्रदेश में भले ही योगी सरकार अपने को सख्त बता रही हो।लेकिन इन दबंगो के सामने हर कर्मी व दोयम दर्ज के अफसर नतमस्तक रहे हैं।

जब तालिबानी यातनाएं देकर पीट पीट कर मरणासन्न कर दिया। पत्नी से पूरी घटना बताई,अस्पताल लाया गया जहां मौत हो गई।हद तो तब है घंटो पुलिस चौकी लक्ष्मण पुर से चंद कदम पर वारदात हुई।इन सबको तब पता चला जब अस्पताल लाया गया।अब मौत के बाद चाहे पुलिस हो या राजस्व महकमा सबके पास बचने का जबाव है कोई जानकारी नहीं दी गई।फिलहाल कहना बिलकुल गलत नही कि डॉक्टर की मौत के बाद जमीन पर कब्जा मिल गया है।अब सात वर्षीय बेटा व मां ही परिवार में हैं।भले ही इस वारदात में आरोप मुख्य रूप से अजय नारायण सिंह व जगदीश नारायण सिंह पर है।

बहुत से ऐसे बैनामा धारक है जिन्हे आज तक इस क्षेत्र में खरीदी जमीन पर कुछ को कब्जा नही मिला है,कुछ से कब्जे के बाद भी अवैध वसूली होती रहती है। खैर बुलडोजर कुछ जमीन पर चला कर चक्का रुक गया है।केवल नगर कोतवाल को सस्पेंड कर इतिश्री कर सीनियर अफसर अपनी नौकरी सेफ कर लिए है।जबकि देखा जाय तो 90 फीसदी मामले राजस्व अफसर व कर्मियों की देन है जिससे विवाद चरम पर हो जाता है।

इसके बावजूद डॉक्टर की जमीन वाले चौकी के दरोगा,लेखपाल/ कानूनगो पर कार्यवाही के बजाय मेहरबान क्यों हैं।फिलहाल ज्यादातर विवाद सदर तहसील के नगर में है जिस पर अंकुश लगा पाना सौ फीसद नामुमकिन है। सदर तहसील में जमे लेखपाल/ कानूनगो की कही शिकायत हो कोई हटा नही सकता।बहुत से ऐसे लेखपाल है जो साल दो साल नही दस दस साल से जमे है।हद तो तब है जब नगर व नगर से सटे गांवो में आज नही आदि से जमे लेखपाल,कानूनगो हर जमीनों को विवादित दिखा,नजूल भूमि पर तो नक्शा तक पास करवाने कि आख्या दे दिए और नक्शा स्वीकृत हो गया है।

सुल्तानपुर ही नही प्रदेश हर सदर तहसील में काफी अरसे से तैनात है लेखपाल व कानूनगो-

समूचे प्रदेश के तहसील सदर में जिन लेखपालों या राजस्व निरीक्षक की तैनाती हो जाती है वे हटना नही चाहते है।इसकी वजह पहला तो सदर में रहने आने जाने की व्यवस्था सुलभ रहती है।दूसरा सदर के भूखंडों की कीमत आसमान छूती रहती है।जमीन का खरीद फरोख्त तभी कोई करना चाहता है जब लेखपाल आन रिकार्ड बता देता है कि जमीन में कोई विवाद नही है।यही से खेल की शुरुआत हो जाती है।वो ऐसे जमीन बेचने वाले प्रापर्टी डीलर से लेखपाल की सेटिंग पहले से रहती है।बिकने व विवाद के साथ लाखो रु की डील गुनिया के थोड़े हेर फेर से हो जाता हैं।

दूसरा यह भी है कि सदर में ही ज्यादातर ग्राम समाज के साथ ही नजूल भूखंड/ नॉन जेडए की जमीन पर जिसकी लाठी उसकी भैंस या धनबल/ बाहुबली को कब्जा जमाने में भी लेखपाल की अहम भूमिका होती है।बिल्डिंग बनाने के लिए नक्शा पास कराने में भी लेखपाल की आख्या लगती है।इस खेल में हर लेखपाल करोड़ पति से कम नही है।इस योगी सरकार में राजस्व महकमे के कर्मी व अफसर को डर नही है।