Saturday, August 23, 2025
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जब जब पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ता है तब तब भगवान लेते है अवतार- पं. मनीष

  • श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन व्यास ने सुनाई कंस वध और कृष्ण-रुक्मिणी विवाह।

धनपतगंज,सुलतानपुर। ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पूरे नेपाल चौबे देहली बाजार में चल रही संगीतमयश्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन की कथा में जिला पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि व बल्दीराय ब्लॉक प्रमुख शिवकुमार सिंह भागवत प्रेमियों के साथ शामिल होकर व्यास पीठ पर विराजमान भगवान की आरती उतार किया प्रसाद ग्रहण।

कथा व्यास पं. मनीष शुक्ल “भैयाजी” ने कंस वध व रुकमणी विवाह के प्रसंगों का चित्रण किया। कथा व्यास ने बताया कि भगवान विष्णु के पृथ्वी लोक में अवतरित होने के प्रमुख कारण थे।जिसमें एक कारण कंस वध भी था। कंस के अत्याचार से पृथ्वी त्राहि त्राहि जब करने लगी तब लोग भगवान से गुहार लगाने लगे। तब कृष्ण अवतरित हुए। कंस को यह पता था कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों ही होना निश्चित है। इसलिए उसने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण को अनेक बार मरवाने का प्रयास किया, लेकिन हर प्रयास भगवान के सामने असफल साबित होता रहा

11 वर्ष की अल्प आयु में कंस ने अपने प्रमुख अकरुर के द्वारा मल्ल युद्ध के बहाने कृष्ण, बलराम को मथुरा बुलवाकर शक्तिशाली योद्धा और पागल हाथियों से कुचलवाकर मारने का प्रयास किया।लेकिन वह सभी श्रीकृष्ण और बलराम के हाथों मारे गए और अंत में श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर मथुरा नगरी को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिला दी। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता वसुदेव और देवकी को जहां कारागार से मुक्त कराया, वही कंस के द्वारा अपने पिता उग्रसेन महाराज को भी बंदी बनाकर कारागार में रखा था, उन्हें भी श्रीकृष्ण ने मुक्त कराकर मथुरा के सिंहासन पर बैठाया।

उन्होंने बताया कि रुकमणी जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। वह विदर्भ साम्राज्य की पुत्री थी, जो विष्णु रूपी श्रीकृष्ण से विवाह करने को इच्छुक थी। लेकिन रुकमणी जी के पिता व भाई इससे सहमत नहीं थे।जिसके चलते उन्होंने रुकमणी के विवाह में जरासंध और शिशुपाल को भी विवाह के लिए आमंत्रित किया था।जैसे ही यह खबर रुकमणी को पता चली तो उन्होंने दूत के माध्यम से अपने दिल की बात श्रीकृष्ण तक पहुंचाई और काफी संघर्ष हुआ युद्ध के बाद अंततः श्री कृष्ण रुकमणी से विवाह करने में सफल रहे।
इस अवसर पर मुख्य यजमान श्रीमती फूला देवी पत्नी विन्देश्वरी प्रसाद चौबे, महेश चौबे, सुरेश चौबे,दिनेश चौबे, मंगलदेव, सूर्यदेव चौबे,अरविंद यादव,अखिलेश कुमार सिंह कल्लू, रामलाल वर्मा,मोनू तिवारी, बहादुर तिवारी, संदीप शुक्ल सहित बड़ी संख्या में श्रद्वालु मौजूद रहे।