धर्म,विज्ञान और स्वास्थ्य—समन्वित चिकित्सा की ओर एक सार्थक पहल -डा रमा द्विवेदी
गोरखपुर।महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, गोरखपुर के अधीन गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, आयुर्वेद में भारतीय ज्ञान परंपरा (IKS) केन्द्र पर “स्वास्थ्य देखभाल पर धार्मिक विश्वासों का प्रभाव” विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पीएचडी डिप्लोमेट, अमेरिकन बोर्ड ऑफ फ़ॉरेंसिक मेडिसिन प्रोफ़ेसर, मेडिसिन विभाग,वरिष्ठ वैज्ञानिक, फार्माकोलॉजिस्ट, यू.एस.फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन डॉ. रमा एस. द्विवेदी ने चर्चा करते हुए आइंस्टीन द्वारा 1930 में प्रकाशित “रिलिजन एण्ड साइंस” का संदर्भ दिया।



उन्होंने बताया कि धार्मिक विश्वास मानव मनोविज्ञान से उपजे हैं भय, संरक्षण की चाह और विस्मय व रहस्य का गूढ़ अनुभव, यही तीन स्तर मानव आस्था की संरचना को परिभाषित करते हैं।डॉ द्विवेदी ने कहा कि आधुनिक क्लिनिकल स्टडीज़ यह स्पष्ट करती हैं कि रोगी और चिकित्सक दोनों की धार्मिक -आध्यात्मिक पृष्ठभूमि स्वास्थ्य निर्णयों, बीमारी सहन क्षमता, तथा उपचार अनुपालन पर उल्लेखनीय प्रभाव डालती है। कोविड-19 महामारी के दौरान अध्यात्म ने चिकित्सा–कर्मियों में मानसिक स्वास्थ्य, करुणा और सहनशीलता को बढ़ाने में सहायक भूमिका निभाई।


अध्यात्म व विज्ञान एक दूसरे के पूरक-डॉ रमा
शोध अध्ययनों में पाया गया कि धार्मिकता अवसाद, नशीली वस्तुओं के दुरुपयोग और आत्महत्या जैसी प्रवृत्तियों में कमी लाती है। प्रार्थना ध्यान जैसे अभ्यास रक्तचाप संतुलन और प्रतिरक्षा मज़बूत करने में सहायक पाए गए हैं।डॉ. द्विवेदी ने हिंदू एवं इस्लामी धार्मिक सिद्धांतों के उदाहरण देते हुए बताया कि विभिन्न आस्थाएँ जीवन, स्वास्थ्य और उपचार को अपनी सांस्कृतिक दृष्टि से देखती हैं किन्तु हिंदू परंपरा में मन–शरीर–आत्मा का संतुलन, योग–ध्यान व सात्त्विक जीवनशैली स्वास्थ्य की आधारशिला है; वहीं इस्लाम में शरीर को ईश्वर की अमानत मानते हुए स्वास्थ्य संरक्षण को धार्मिक कर्तव्य कहा गया है।
उन्होंने सांस्कृतिक दक्षता को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा की अनिवार्य शर्त बताया ।रोगी की मान्यताओं का सम्मान, संवाद, परिवार की भागीदारी,तथा धर्मगुरुओं द्वारा मंत्र जप अनुष्ठान उपचार परिणामों को प्रभावी बनाते हैं।भारत के संवैधानिक और विधिक ढाँचे, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, अंग प्रत्यारोपण अधिनियम तथा इच्छामृत्यु संबंधी न्यायालयीय निर्णयों का उल्लेख भी उन्होंने किया, जो स्वास्थ्य नीति में सांस्कृतिक संवेदनशीलता की पुष्टि करते हैं।व्याख्यान के समापन पर डॉ. द्विवेदी ने कहा जब विज्ञान और अध्यात्म साथ चलते हैं, तब उपचार अधिक मानवीय, करुणाशील और प्रभावी बनता है।


ध्यान, चित्त–स्थिरता स्वस्थ जीवन का आधार
अध्यक्षीय भाषण देते हुए मे गोरक्षनाथ मेडिकल कॉलेज हास्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर के प्राचार्य डॉ अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि “स्वस्थ” का वास्तविक अर्थ स्वयं के स्वरूप में स्थित होना है। ध्यान, चित्त–स्थिरता और आत्मानुशीलन स्वास्थ्य का आधार हैं।स्वागत भाषण देते हुए आयुर्वेद कालेज के प्राचार्य व आईकेएस प्रिंसिपल डॉ गिरिधर वेदांतम ने कहा कि आधुनिक चिकित्सा और आयुर्वेद जैसे पारंपरिक ज्ञान–तंत्रों का एकीकृत मॉडल रोगियों की जीवन–गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार ला सकता है।
अतिथि परिचय फार्मेसी संकाय के डीन डॉ मधुसूदन पुरोहित ने कराया। धन्यवाद भाषण डा चन्द्रशेखर मूर्ती ने किया।कार्यक्रम में उप-प्राचार्य डा सुमित, आईकेएस सह समन्वयक डॉ साध्वी नन्दन पाण्डेय, डॉ देवी नायर, डॉ अभिजीत, डॉ प्रज्ञा सिंह, डॉ सार्वभौम, डॉ नवोदय राजू ,संकाय सदस्यों, चिकित्सकों शोधार्थियों एवं बीएएमएस ,एमबीबीएस विद्यार्थियों, राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवकों ने उत्साहपूर्वक सहभागिता की।








